Monday, October 30, 2017

सोच एव अत्त दीपो भव:

प्रधानमंत्री जी की सोच।।

वजहें तो बहुत है परेशां होने की
खुश होने के बहाने नदारत होने लगे है
अपनी जहां से
सुना था पंद्रह लाख मिल जायेंगे
क्षणिक खुशी परेशानी बन गई
जुमलों ने तो हमला कर दिया है
ज़िन्दगी का सकूं छिन लिया है
नित नई परेशानी नोटबन्दी का दर्द
भूला भी न था
किसान भगवान फांसी पर
झूलने लगे थे
दिन डरावना रात स्याह लगने लगी थी
देश में परेशानियों की कमी तो न थी
जातिवाद, अत्याचार, बलात्कार,
हत्या और भी बहुत कुछ
अब नए माह से नई परेशानी
जी एस टी की शुरू है कहानी
लोग कहने लगे प्रधानमंत्री जी
पूरी कमाई ले लो
टैक्स दे दो
नौकरी पेशा वाले पहले से 
परेशां है
कमाई महंगाई डायन ली रही थी
सरकार भी कम ना थी ना है
तनख्वाह मिलने से पहले 
टैक्स वसूली
बची तनख्वाह पर बाजार का
टार्चर 
नून तेल, दाल टेवन पर 
और टैक्स
कमाई एक टैक्स बहुतेरे
कैसे बीतेंगे चैन से सांझ सबेरे
हे भाग्य विधाता देश के 
प्रधानमंत्री जी
सुन लो विनती कर दो
एक देश एक टैक्स
एक शिक्षा,जातिविहीन समाज,हिन्दी राष्ट्र भाषा
बहुत कम हो जाएगा परेशानियों का
बोझ
अपनी जहाँ युग युग गाएगी
वाह रे दूरदृष्टि प्रधानमंत्री जी की सोच।।।।
डॉ नंदलाल भारती
01/07/2017













अत्त दीपो भवः को मान लो।।।।।

ये कैसी सोच है
पिछड़े, दलितों, चमारो की
ये अछूत है
शिक्षा मंदिर के द्वार बंद थे
इनके लिए ही
लोकतंत्र ने मौका दिया
पढ़ने और  आगे बढ़ने का
इनको भी
पढ़ रहे आगे बढ़ रहे भी
पर क्या ये तो आज भी बहकावे में है
यूरेशियन के मनगढंत भगवान
और
छत्तीस करोड़ देवी देवताओं की गिरफ्त में हैं
 आज भी
मार खा कर भी
मंदिर की डयोढ़ी चढ़ते हैं
पूजा करते हैं, परसाद चढ़ाते हैं
पत्थर को दूध भी पी लाते हैं
दान दक्षिणा भी दे आते है
तरक़्क़ी का श्रेय पत्थर को
दे आते हैं
ये भूल जाते हैं, तरक़्क़ी का कारण
पत्थर की आकृतियां नही
खुद सोचो जो भगवान
अपनी रक्षा के लिए 
ना प्रकार के हथियार धारण करते हैं
ये तुम्हारी रक्षा कहाँ करेंगे
संविधान लागू होने के पहले भी तो थे
 ये पाषाण के भगवान
तब तो स्कूल के दरवाजे भी बंद थे
तुम्हारे लिए
तुम्हारी बर्बादी के दिनों में
कहाँ थे अजीबोगरीब भगवान
तब तुम क्यों नही थे महान
तुम्हारी तरक़्क़ी का कारण है
संविधान
अपने दुश्मनों को पहचानो
देश को धर्म, संविधान को धर्मग्रंथ मानो
भगवान एक है, रूढ़िवादी भगवान
और
छत्तीस देवी देवताओं को भुला दो
पुरानी लकीर पर फ़क़ीर ना बनो
रूढ़िवादी जातिवादी बदल डालो
 अत्त दीपो भाव: को मान लो ।।।।।
डॉ नन्दलाल भारती
22/06/2017

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