मैं आपको भेजता हूँ
सलाम,
आपने जो दिया है
पैगाम,
महिला दिवस पर सम्मान
जो किया है,
कुसुमित हो आपके काम
महिला जो माँ भी है
हमारी
माँ बहन बेटी को जो
आपने मान दिया है
प्यारे सदा देना
नारी शक्ति को मान
सरस्वती दुर्गा लक्ष्मी
करना है उसका सम्मान,
ना हो भ्रूण हत्या ना हो
ना गरजे दहेज़ दानव
नारी हो नारी उत्पीड़न
इस मुद्दे पर करना है
काम,
महिला दिवस पर
कृभको सयंत्र की
नारी शक्ति का किया है
जो सम्मान,
सराहनीय है पहल
कृभको कर्मचारी संघ का
काम
सभी सदस्यों को मेरा
सलाम...................
डॉ नन्दलाल भारती
08/03/2017
सलाम,
आपने जो दिया है
पैगाम,
महिला दिवस पर सम्मान
जो किया है,
कुसुमित हो आपके काम
महिला जो माँ भी है
हमारी
माँ बहन बेटी को जो
आपने मान दिया है
प्यारे सदा देना
नारी शक्ति को मान
सरस्वती दुर्गा लक्ष्मी
करना है उसका सम्मान,
ना हो भ्रूण हत्या ना हो
ना गरजे दहेज़ दानव
नारी हो नारी उत्पीड़न
इस मुद्दे पर करना है
काम,
महिला दिवस पर
कृभको सयंत्र की
नारी शक्ति का किया है
जो सम्मान,
सराहनीय है पहल
कृभको कर्मचारी संघ का
काम
सभी सदस्यों को मेरा
सलाम...................
डॉ नन्दलाल भारती
08/03/2017
कुछ उठे हुए लोग
रेंगते हुए को
मसलने की फ़िराक में
रहते है
मौका मिलते ही
कर कर लेते हैं पूरी
रेंगते हुए को
मसलने की खुनी
ख्वाहिश
पागलपन के शिकार
रेंगते हुए मंजिल की ओर
बढ़ते हुए को रौंद कर
सुरक्षित कर लेते है
अपनी तरक्की
हार कहा मनाने वाला
रेंग रेंग कर बने निशान
कहाँ मिटते है
कहाँ नेस्तानाबूत
होते है
श्रम और पसीने से
निर्मित अस्तित्व
दुर्भाग्यवश मसलने का
चक्रव्यूह जारी है
रेंग रेंग कर बनी
अस्तित्व की मीनार
आज भी भारी है।
डॉ नन्दलाल भारती
05/03/2017
रेंगते हुए को
मसलने की फ़िराक में
रहते है
मौका मिलते ही
कर कर लेते हैं पूरी
रेंगते हुए को
मसलने की खुनी
ख्वाहिश
पागलपन के शिकार
रेंगते हुए मंजिल की ओर
बढ़ते हुए को रौंद कर
सुरक्षित कर लेते है
अपनी तरक्की
हार कहा मनाने वाला
रेंग रेंग कर बने निशान
कहाँ मिटते है
कहाँ नेस्तानाबूत
होते है
श्रम और पसीने से
निर्मित अस्तित्व
दुर्भाग्यवश मसलने का
चक्रव्यूह जारी है
रेंग रेंग कर बनी
अस्तित्व की मीनार
आज भी भारी है।
डॉ नन्दलाल भारती
05/03/2017
दर्द देने वाला आदमी
इतना गिर जाता है
मद में कि
आदमी को कमजोर
और
पंहुचविहीन जानकर
सकूं छिन लेता है
ताकि
हाशिये का आदमी
स्वीकार कर ले दासता
तैयार रहे जूता
उठाने के लिए त्याग कर
जीवन के उसूल...........
यदि नहीं हुआ ऐसा तो
तन जाता है मुर्दे की तरह
बर्बाद करने के लिए
हाशिये के आदमी का जीवन
उछाल देता है
कमजोर पर मर्यादापसंद
अतिसभ्य आदमी की
अस्मिता
गुमान के खंजर पर.........
कमजोर बिखर जाता है
टूटकर पर नहीं त्यागता
मानवतावादी संस्कार
पूर्ण समर्थ पर
मुर्दाखोर आदमी के
दिए दर्द से डर कर.....…...
सच कमजोर आदमी का
जीवन शूलों पर शुरू
होता है
उसूलों पर ख़त्म
लोग है कि हाशिये के आदमी
दर्द को लेते है
चटकारे की तरह
और
हाशिये का आदमी
दर्द के नशे में निरंतर
संघर्षरत रहता है
आदमी द्वारा दिए दर्द से
उबरने के लिए।
डॉ नन्द लाल भारती
04/03/2017
इतना गिर जाता है
मद में कि
आदमी को कमजोर
और
पंहुचविहीन जानकर
सकूं छिन लेता है
ताकि
हाशिये का आदमी
स्वीकार कर ले दासता
तैयार रहे जूता
उठाने के लिए त्याग कर
जीवन के उसूल...........
यदि नहीं हुआ ऐसा तो
तन जाता है मुर्दे की तरह
बर्बाद करने के लिए
हाशिये के आदमी का जीवन
उछाल देता है
कमजोर पर मर्यादापसंद
अतिसभ्य आदमी की
अस्मिता
गुमान के खंजर पर.........
कमजोर बिखर जाता है
टूटकर पर नहीं त्यागता
मानवतावादी संस्कार
पूर्ण समर्थ पर
मुर्दाखोर आदमी के
दिए दर्द से डर कर.....…...
सच कमजोर आदमी का
जीवन शूलों पर शुरू
होता है
उसूलों पर ख़त्म
लोग है कि हाशिये के आदमी
दर्द को लेते है
चटकारे की तरह
और
हाशिये का आदमी
दर्द के नशे में निरंतर
संघर्षरत रहता है
आदमी द्वारा दिए दर्द से
उबरने के लिए।
डॉ नन्द लाल भारती
04/03/2017
।
।
बेहयापन की हदें कुछ
इस कदर बढ़ने लगी हैं
हया की छाती में जैसे
खंजर उतरने लगी है
माकूल नहीं आहो हवा
हवा भी अब
जहर उगलने लगी है।
.........................
नेक आदमी परेशां इतना
दर्द की चीख आंखों से
उतरने लगी है,
बेहयापन की हदें इस
कदर बढ़ने लगी हैं।।।।।
डॉ नन्द लाल भारती
26/02/2017
।
बेहयापन की हदें कुछ
इस कदर बढ़ने लगी हैं
हया की छाती में जैसे
खंजर उतरने लगी है
माकूल नहीं आहो हवा
हवा भी अब
जहर उगलने लगी है।
.........................
नेक आदमी परेशां इतना
दर्द की चीख आंखों से
उतरने लगी है,
बेहयापन की हदें इस
कदर बढ़ने लगी हैं।।।।।
डॉ नन्द लाल भारती
26/02/2017
मतलब/कविता
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब
बस ये ही नहीं कि
ज़माने भर का खजाना
भर ले अपनी कुठली में
किसी हद तक गिरकर
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब तो बस
ये है कि,
हम तुम मिलकर रोप दे
ऐसी पौध
जो देती रहे सुगन्ध
पहली वारिश में
माटी के सोंधेपन में
नहाई हुई
यही होना चाहिए
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब
हमारे तुम्हारे प्रतिनिधित्व के लिए
यही जरुरी है
यही होना चाहिए
हमारे तुम्हारे और
हमारे अपनो के भी होने का
मतलब
यही होगी सच्ची वरासत
हमारे अपनो के लिए
रख सके जो सुरक्षित
हमारे तुम्हारे होने का मतलब।
डॉ नन्द लाल भारती
14/02/2017
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब
बस ये ही नहीं कि
ज़माने भर का खजाना
भर ले अपनी कुठली में
किसी हद तक गिरकर
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब तो बस
ये है कि,
हम तुम मिलकर रोप दे
ऐसी पौध
जो देती रहे सुगन्ध
पहली वारिश में
माटी के सोंधेपन में
नहाई हुई
यही होना चाहिए
हमारे तुम्हारे होने का
मतलब
हमारे तुम्हारे प्रतिनिधित्व के लिए
यही जरुरी है
यही होना चाहिए
हमारे तुम्हारे और
हमारे अपनो के भी होने का
मतलब
यही होगी सच्ची वरासत
हमारे अपनो के लिए
रख सके जो सुरक्षित
हमारे तुम्हारे होने का मतलब।
डॉ नन्द लाल भारती
14/02/2017
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