Sunday, April 12, 2015

जहरीले वायरसों के सफाये के लिए/कविता

जहरीले वायरसों के सफाये के लिए/कविता 
हम जान चुके है ,अपनी जहां के ,वायरसों की असलियत ,
यही वही  घिनौने वायरस है ,जिन्होंने फैला दिया है 
जातिवाद-वंशवाद का कोढ़ बना दिया है
बेगाने निरापद परिंदो के  मधुमास को पतझड़ ………
विज्ञान के आधुनिक युग में भी हाल हो चला है 
बद से और बदतर
उम्र के साठवें  दशक के पड़ाव पर भी 
ये वायरस आज भी  जुटे रहते है 
करने को शेष  मधुमास को कलंकित ………
हम है कि सभ्य की चदरिया ओढ़े ,सभ्यता के आवरण में दुबके 
मौन सहते जा रहे है,हर रिसते जख्म का दर्द और 
घिनौना संक्रमणो  के जान लेवा प्रहार भी  ………
ये आदमियत विरोधी वायरस 
हमें अपने शिकंजे में कसते जा रहे है निरंतर 
बेमौत मारने के लिए ,
आधुनिक युग के ये वायरस 
नागा साकी में गिराये गए बमो जैसे 
घातक हो गए है  ………
पैदा हो रहे है नित  अमनुषतावादी भ्रष्ट्रचार के अणुकोष  
पोस रहे है जाति -वंश विषमता और स्वार्थ के 
सूक्ष्तम  वायरस जो हमारी जड़े कुतरे  है निरंतर  ………
नोट -चारा ,ताबूत कोयला और बहुत कुछ, कि  जुगाली करते -करते 
निरापद शोषितो के हक - अधिकार पचाते  पचाते 
चेक वही जो विश्वास का पर्याय है दुनिया के लिए, 
 वह भी निगलने लगे है 
और उगलने लगे है जान लेवा सुक्ष्म वायरस 
निरापदो की तादात काम करने के लिए  ………
ये शातिर शान -जान-माल लेवा वायरस
इल्जाम का भार निरापद की छाती पर, दहकाने लगे है 
जोड़ -तोड़ में माहिर वायरस,पुरस्कृत होने लगे है
आधुनिक धृतराष्ट्रो के   हाथो 
पद -मद और दूसरे लाभो का जखीरा पाकर ………
हम निरापद जहां काट रहे जीवन का मधुमास 
कर्म-श्रम-वफ़ा और  उम्र न्यौछावर कर 
वही जी  रहे भय -आतंक संग  रिसते  दर्द पीकर 
निरापद थक रहे ढोते- ढोते कुफ़्त और बदनामी का दाग 
हाय रे अपनी जहां के वायरसों 
तुमने बना  दिया  भाग्य को दुर्भाग्य………
जहरीले वायरस  गिरफ्त में ले ले अपनी जहां 
उससे पहले  सभ्य लोगो जागो और उठो
तोड़ दो सभ्यता की खोल का मौन 
बढ़ा दो हाथ मानवता-समानता-सदभावना 
जन और राष्ट्र की रक्षा के लिए  
और 
जहरीले वायरसों के सफाये के लिए ………
डॉ नन्द लाल भारती 04 .04 .2015

No comments:

Post a Comment