Saturday, November 1, 2014

साथ साथ खड़े हैं ./कविता




साथ साथ खड़े हैं ./कविता  
संयोगवश नहीं ,स्वदेश प्रेम 
और त्यागवश
हम यहाँ साथ साथ खड़े हैं
पीठ से सटा पेट
माथे पर चिंता
कंधो पर नित मरते
सपनो का बोझ लेकर .........
जातिवाद,छुआछूत तंगहाली
आदमी होने के सुख से वंचित
कैद नसीब का अभिशाप ढोकर
हम यहाँ साथ साथ खड़े हैं .........
अरे इंसानियत दुश्मनो 
अपने चक्रव्यूह में फंसाकर
अब इतना ना निचोड़ो
जैसे तुम्हारे पूर्वजो ने निचोड़ा
आदमी को आदमी नहीं समझा ………
छिन लिया साजिश रचकर
जमीन आसमान अपना
और
तुम्हारे लिए हासिल कर लिया
स्वर्ग का सुख ..........
हमारे पूर्वज तुम्हारे पूर्वजो
जैसे नहीं हुए अमानुष 
अब हमें और हमारे लोगो को
स्वछन्द विहार करने दो
हमारे जमीन आसमान 
वापस कर दो .......
ताकि हम हमारे लोग
आधुनिक लोकतंत्र के युग में
आदमी होने का सुख भोग सके
मान सके संविधान का उपकार
और 
कर सके
लोकतंत्र की जय जयकार
डॉ नन्द लाल भारती 18 .10.2014

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