Saturday, July 5, 2014

तौहिनी लगाती है/कविता

तौहिनी लगाती है/कविता
बोध के समंदर से जब तक था  दूर 
सच  लगता था सारा जहां अपना ही है 
बोध  समंदर  में डुबकी क्या लगी 
सारा भ्रम टूट गया 
पता चला  पांव पसारने की इजाजत नहीं 
आदमी होकर आदमी नहीं 
क्योंकि जातिवाद के शिकंजे में कसा 
कटीली चहरदीवारी के पार 
झांकने तक की इजाजत नहीं 
बार-बार के  प्रयास विफल ,
 कर दिए जाते है ,
 अदृश्य प्रमाण पत्र ,दृष्टव्य हो जाता  है 
 चैन से जीने तक नहीं देता 
रिसते घाव को खुरच  दर्द ,
असहनीय  बना देता  है 
अरे वो शिकंजे में कसने वालो 
कब करोगे आज़ाद तुम्ही बता दो 
दुनिया थू थू कर थक चुकी है 
अब तो तुम्हारी भेद भरी जहां में 
जीने की क्या       ?
मरने की भी तौहिनी लगाती है …।
डॉ नन्द लाल भारती 05 .07.2014 

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