Monday, July 21, 2014

हठधर्मी /कविता
कल की ही तो बात है ,
वफ़ा, विश्वास,समर्पण के बदले
जड़ा गया माथे पर
भरी महफ़िल में कांटो का ताज
और निरूपित हो गया हठधर्मी
अफ़सोस नहीं कोई,गुमान है
हठधर्मिता पर आज भी
सच्चाई और हक़ का अदना,
सिपाही होने के नाते …।
दुःख की कोई ख़ास वजह  नहीं
मैं  और मेरे जैसे लोग जानते है
जहां में आरोप -प्रत्यारोप  का जहर
परोसा जा रहा है युगो से
सुकरात को भी दिया गया था …।
अभिव्यक्ति की आज़ादी के युग में तो
आज भी परोसा जा रहा है बेख़ौफ़
भरपूर समर्थन की छाँव तले ,
अपनी जहां  में सत्य आज भी
दब जाता है ,हक़ लूट जाता है
हकदार टूट और बिखर जाता है परन्तु
हक़ सदा के लिए दबा  नहीं रह जाता
उतरा ही जाता है वक्त की लहरो में
सत्य और हक़ का शंखनाद करने वाले
वास्तव में हठधर्मी है तो ,
मुझे भी यह जहर पीने में,
तनिक भय नहीं  …।
डॉ नन्द लाल भारती 22 .07.2014  








 


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