Saturday, May 10, 2014

हर दर्द पीये जा रहा हूँ /कविता

हर  दर्द पीये जा रहा हूँ /कविता
तथाकथित चौथे दर्जे का दंड
भेद भरी जहा मे
ये हो गया है कि
मै और मेरी वफ़ा पर
फ़ना  होने की  जिद
ना जाने क्यों  भा नहीं रही  ..........
मैं हूँ कि
लहूलुहान टूट-टूट कर भी
ख़ुद्दारी पर मरे जा रहा हूँ हर पल
पत्थर  दिलो पर
दूब उगाने की जिद मे
आज-कल स्वाहा किये जा रहा हूँ,
भेद भरी जहा मे ..........
लोग है  कि बोये जा रहे है
विष-बीज निरन्तर
खबरदार मै भी
अस्तित्व  की रक्षा के लिए
हूँ संघर्षरत आँख खुली तब से ही…………।
अस्तित्व ही तो अपनी पूंजी है
बाकी सब कुछ तो लूट लिया है
हक़ ,नसीब ,
आदमी होने तक का सुख भी
भेद भरी जहां वालो ने ………।
भेद भरी जहां मे,
इतना सा  ख्वाब है
आदमी होने क हर सुख मिले
यही  ख्वाब लिये
आदमी का दिया हर दर्द
पीये जा रहा हूँ
भेद भरी जहां मे जिये जा  रहा हूँ…………।
डॉ नन्द लाल भारती
15 -एम  वीणा नगर ,इंदौर -452010
 11 मई  2014

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