Tuesday, November 12, 2013

साथ/कविता

साथ/कविता
जीवन क्या……?
जो जी लिया वही अपना
लोग पाये दुनिया परायी,
 सच है कहना।
जीवन में कैसे -कैसे धोखे ,
मोह ने लूटे ,
मतलब बस संग ,
डग भरते लोग खोटे।
मतलबी औरो को बर्बाद कर ,
शौक में जीते ,
आदमियत की छाती में ,
नस्तर घोप देते है।
भेद के पुजारी ,
चोट गहरा कर देते है।
गरीब के भाग्य का
ना हुआ उदय सितारा ,
गैरो की क्या .......?
अपनो ने हक़ है  मारा।
बदनेकी पर नेकी की
चादर दाल देते है ,
स्वार्थ में क्या मरना…?
सब साथ हो लेते है। डॉ नन्द लाल भारती

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