Sunday, October 6, 2013

कातिल /कविता

कातिल /कविता नर के रूप में मुर्दाखोर शैतान ,
तुम्हे कोई  कैसे कह दे
सच्चा इन्सान
डसते हो  नसीब  ,
बेमौत  मारते हो सपने
हाशिये का आदमी दर्द से दबा,
नींद में भी भरते रहते हो भय
बार-बार शोषित आदमी के उर में ,
नाम तुम क्यों न रख लो
विजय प्रताप,अवध प्रताप,
प्रताप देव इन्दर
राम दरवेश,द्वारिका या राज इन्दर
जहर की गोली पर चाँदी के बर्क हो ,
हाशिये के आदमी के अस्तित्व को
तबाह करने के लिए काफी हो ,
वंचित आदमी के उर में

ठहरा रहता है भय निरंतर ,
समुद्री तूफान के तरह बरोबर ,
भर जाते हो  व्यथा जीवन में
असि की फुफकार अश्रु भरते हो ,
दुःख दर्द देने वाले ,हक़ छिनने वाले
सपनों के कातिल
मुर्दाखोर अपनी जहां में 
तुम तो हाड़ मांस के
नर पिशाच लगते हो………

डॉ नन्द लाल भारती  06  .10 .2013
सदविचार- कटटर विरोधियों के बीच  विवेकशील चरित्रवान व्यक्ति का व्यकित्त्व अनमोल रत्न की भांति निखर जाता है बशर्ते व्यक्ति संयम और  सावधानी बरते।
डॉ नन्द लाल भारती  07  .10 .2013

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