आदमी होने के सुख को न चुराओ/कविता
दबे कुचलो को तनिक
तरक्की की राह पर चलते
दबे कुचलो को तनिक
तरक्की की राह पर चलते
पाँव पर जोर अजमाते ,संभलते देख
आज भी कुछ लोगो के
हिया दमन की आग
दहकने लगती है।
सदियों से आंसू पीया जो
नब्जे आज भी उसकी,
कराहे जा रही है।
कहा बराबरी का मौका ,
पग-पग पर कांटे पल-पल पर
धोखा ही धोखा।
भले आदमी चाँद पर चढ़ गया है
मंगल पर बस्ती बसाने को
उतावला हो रहा है।
हाय रे जाति-भेद का मोह
मानवीय समानता रास आती
नहीं उसको
नहीं उसको
जाति वंश के नाम ठोंक -ठोंक ताल
थकता नहीं आज भी।
ऊँच -नीच जाति -भेद के नाम
दर्द परोसने वालो
कमजोर जानकर दबे-कुचलो की
जिन्दगी स्याह करने वालो
आँखों को आंसू देने वालो
खुदा से खौफ तो खाओ
आदमी हो आदमी के
आदमी होने के सुख को न चुराओ।
डॉ नन्द लाल भारती 17 .09 . 2013
डॉ नन्द लाल भारती 17 .09 . 2013
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