Wednesday, May 22, 2013

खुद को खुदा न बनाओ

खुद को खुदा  न बनाओ
वाह  रे अपनी जहां के कातिल लोग
खूब कर रहे
दबे कुचलो  की नसीबो का भोग
सर नोचे या पटके दर-दर माथ
लूटती रही नसीब
तकदीर के कातिलो के हाथ ................
कातिलो के नाम प्रतापी जैसे
विजय अवध देव-इंद्र  राज-इंद्र ऐसे
रह गए शोषित लोग हाथ मसलते
झरता रहा झराझर  श्रम
तालीम,योग्यता ,हक़ बेमतलब
अपनी जहाँ में ......................
कर्मपूजा फ़र्ज़ पर फना  होने वाला
होगा अच्छा ,कल में जीने वाला
धोखा मिलता पल-पल
कांटे गड़ते पग-पग पर
श्रमवीर   कहाँ हारने वाला
जीता नहीं जो अपनी जहां में .....
तरक्की से दूर राह ताकता
संतोष की दौलत का रखवाला
ना मिली तरक्की ना नसीब हो सकी आज़ाद
बदला  बहुत कुछ
बस ना बदल जाति-पाँति का दर्द ....................
नसीब के कातिल रंगते  रहे
पीढ़ियों के सुनहरे भविष्य
लूटी नसीब के मालिको के हक़ से
ठगा आदमी कहा जी सका चैन से ................
ये शोषितों की तकदीर के दुश्मनों
होश में आ जाओ तुम
खुद को खुदा  न बनाओ
लगेगी आग जब तुम्हारी जहाँ में
ना बचा पाओगे तुम ................डॉ नन्द लाल भारती 23.05.2013

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