Thursday, May 9, 2013

बहारो तुम ना रूठा करो .....

बहारो तुम ना रूठा  करो 
बहारो तुम ना रूठा  करो
लूट गयी सरेजहाँ नसीब
बेमौत मर  रहे सपने सारे
तुम्हारी आस में तमन्ना जागी है 
बहारो तुम ना रूठा  करो
मेरे द्वार कभी झिलमिलाया करो
................
सताती ये परायों की दुनिया
खुद की सांस पर ना भरोसा रहा
परायी दुनिया के लोग छलते है
खुद को न जाने क्यों खुद कहते है
उठ गया भरोसा नसीब के दुश्मनों से
तुम तो तनिक हौशला बढाया करो बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
लूटेरे काबिज है यहाँ-वहाँ
सदियों से नसीब लूटने की फल  रही
साजिश यहाँ
अपनी जहां में मर रहे नित सपने हरे-भरे
अपनी ले से दिल को नहवाया करो

बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
हो चुकी है शिनाख्त तुम्हारी बेबसी की भी 
हमारी गली में आने की मनाहायी है तुम्हे
आजाद होती तुम ना छला जाता श्रम 
ना लूटा गयाहोता हक़ यहाँ
दीन  की आँखों का पानी पहचान लो
 हाशिये के लोग हक़  की पहचान करे 
अपनी आजादी की तुम भी  ऐलान करो 
अब बहारो तुम ना रूठा  करो ..............
डॉ नन्द लाल भारती
10 .05.2013

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