Wednesday, March 20, 2013

निगाहें कर्म कहाँ .....

निगाहें कर्म कहाँ   उनकी
 
बरसती रही दहकते अंगारे
स्वाहा  हुए अरमान दिल के
कैद  नस्सेब का कौन सहारे ,
ख्वाहिशें जवाँ ,
बैसाखियों की नहीं औकात 

गुनाह कैसा .....भेद और बँटवारे
यही कैद नसीब पर लगाए घात
बिना खता का घाव
उजड़ते रहे गरीब के
लहू-पसीने से पोसे सपने
गरीब नहीं------बनाया गया
विश्वाश करने की कमजोरी
खुद की नसीब के दुश्मन
दिखावे में बनते अपने
दो राहे पर खड़ा
कैद नसीब का मालिक
पूरी आस्था और आस बिछाए
वाह रे भेद भाव के पोषक
लूट रहे सरेराह ,
ना सज सका नसीब
तालीम और योग्यता
तड़पती रह गयी
गरीब को
गरीब बनाने का चक्रव्यूह
अनवरत जारी है यहाँ
कैद नसीब का मालिक
 कैसे फल फूल सकेगा  यहाँ
गरीब जानकर
नसीब कैद करने वाले लोग
तरक्कियो की मीनार
चढते चले जा रहे लोग
कर्म का पुजारी
आंसू से रोटी करता
रह गया ...
हाल-ए -बयाँ कौन  सुनेगा
भेद भरे जहां ,
आस थी जिनसे
लोभी अंधे-बहरे -गूंगे हो गए
कर्म का सिपाही
फ़र्ज़ पर अड़ा
कैद नसीब छुड़ाने पर खडा
बो रहा श्रम बीज
कल की आस में
पतझड़ हुआ मधुमास
लहलहा उठे
कल के मधुमास में ....डॉ नन्द लाल भारती ....2 0 .0 3.2 0 1 3

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