Tuesday, March 5, 2013

जीवन अधारा ......

जीवन अधारा ......अंखिया थंकी  मरते सपने 
मन बावरा ना हारा
दर्द डंसता भरी दुनिया
मधुमास गया हारा
उमंगो की दुनिया अपनी
मन-मंदिर में बहारो का बसेरा
शोषण उत्पीडन ठगे जाते
हाशिये के लोग
लूट नसीब ऐसी न हुआ सबेरा
ख्वाहिशे है बाकी सपना सजा सजाया 
उम्र जा रही भागी कुछ हाथ ना आया
राहों में घूप अँधेरा मधुमास अपने पतझड़ गहराया
दर्द में कटता दिन रात चिंता में बित  जाती
जिगर बसा अपने उम्मीद का उजियारा
श्रम की थाती जीवन बाती
भेद  लकीरें हक़ लूट जाती
किस्मत लूटी यकीन के कैसी परते
शोषण अत्याचार भ्रष्टाचार की लागू शर्ते
शोषित आदमी नित करता विष का सेवन
आँखे पथराई दर्द पर पसीना की पेवन
दर्द भरा हो गया जीवन हार हार ना हारा
हे विधना भेद भरी दुनिया में
हाशिये के लोगो का
तू और
उनका झराझर श्रम जीवन अधारा ......
डॉ नन्द लाल भारती  05.03.2013

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