Saturday, February 16, 2013

जिए तो जिए कैसे ।।

जिए तो जिए कैसे  ।।
कैसी अनहोनी
जीवन में अपने
घायल मन
मरते सपने ।।
सकूँ की बयार
मन-मंदिर में
टिक नहीं पाती
विरोध की बयार
उठ जाती ।।
यकीन की परते
जमे कैसे
उठते बवंडर
भेद-पद-दौलत-जातिवंश के
भयावह
उड़ा ले जाते
तह-दर-तह
खिलखिला उठते
लोग अमानुष जैसे ।।
ऐसे फिजा में
मलालो की परते
जवाँ हो जाती है
आदमियत मरती
बेमौत
तुम्ही बताओ विधना
जिए तो जिए कैसे  ।।
डॉ नन्द लाल भारती
17.02.2013

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