Sunday, October 21, 2012

अभिलाषा में ...

अभिलाषा में ...
अपनी जहां में ठगा गये आदमी को
यकीन हो गया है
वही जहां
जीवन का बसंत झरा निरंतर
श्रम झराझर  बहा
ठगा गया वही आस्थावान आदमी ........
अपनी जहा के लोग
साथ उन्ही का वही लोग
जो घात  में  निरंतर
ऐसे जैसे मौत का हो पहरा ................
भेद की कंटिया ऐसी
झूला दी फंसी पर
अरमान,हक़ , सारी योग्यताये
पार कर दी सारी हदे भी
और बना दिया  दोयम दर्जे का आदमी
अपनी ही जहां में  .................
पता चल गया है
दिखावा और असलियत का
सच भेदभाव  की  जड़ें हिली नहीं है ..............
मौंका बेमौका जातीय भेदभाव की कीले
ठोंक दी जाती है बीचो-बीच छाती में
ठगा गया आदमी
रह जाता है  झटपटाता
मानवीय समानता की अभिलाषा में .............नन्द लाल भारती ..22..10.2012

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