Monday, October 15, 2012

कैद मे....

कैद मे....
अपनी जहा में सच लगने लगा है
वंचितों का हक़  कैद हो गया है
जैसे स्विस बैंक में ........
देश का खजाना
हो-हल्ला तो बहुत होते है
वापस लाने  के पर
मौन पसर जाता है .......
स्विस बैंक का ताला
रह जाता है अभेद्य
कैद रह जाता है देश का खजाना
पराये देश में कैद .............
वैसे ही वंचितों के नसीब और
मानवीय समानता
कैद है
शदियों से रुढिवादिता  की कैद मे....
अपनी जहां में ऐसा ही हो रहा है
शोषित आदमी आज भी तरस रहा है .....नन्द लाल भारती 16.10.2012

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