Sunday, September 2, 2012

हाशिये के लोग

हाशिये के लोग
करोडो अरबो में खेलने वालो
किलेनुमा महलों में रहने वालो
मेरे गाव चलोगे क्या .................?
जहाँ कुए का पानी आज भी
अपवित्र है
पसरी है गरीबी,अशिक्षा और
जातीय भेद भी ........
गाँव के मेहनतकश
कमेरी दुनिया के मालिक
हाशिये के लोग
फांका में भी  रात काट लेते है
नीम की छांव बेख़ौफ़
भर नींद सो लेते है
तरक्की  की बाट जोहते हुए .......
सामाजिक आर्थिक सम्पन्नता
आज तक  नहीं पहुंची है
वंचितों की चौखट तक
क्यों नहीं पहुँच है
धर्म और राजनीति के ठेकेदार
जानते है अच्छी तरह
अब तो सुन लो
हाशिये की आवाज़
गूँज रही है हाहाकार
कब तक रहेगे
हाशिये के लोग
अछूत गरीब तरक्की से दूर
और लाचार....नन्द लाल भारती .......०३.०९.२०१२

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