Friday, September 14, 2012

स्वांग रच रहा है आदमी .

स्वांग रच रहा है आदमी .
आधुनिक होने का स्वांग
रच रहा है आदमी
बिल्ली रास्ते से निकल जाए
अपशकुन मान रहा है आदमी
मंदिर की चौखट से दूर
फेंका जा रहा है आदमी
शिक्षा मंदिर  में
उंच -नीच में बाँट रहा है आदमी
पानी पिलाना पुण्य का काम
आधुनिक  युग में पात्र  छूने पर
प्रताड़ित किया जा रहा है आदमी
कैसी तरक्की ....?
छोटी जाति के कुएं के पानी को
अपवित्र कह रहा है आदमी
चेहरे बदलने वाले  परजीवी
कमजोर के  लहू  पर पलते है
खुद को कहते है
आधुनिक युग का आदमी
कैसी तरक्की कैसे ये आदमी
आदमी को अछूत मान  रहे  है आदमी
भेदभाव का विष बीज बोता
कहने को राम राम
बगल में छुरी खोंसे  आदमी
नए जमाने में
चेहरा बदल -बदल कर आदमी को
डंस रहा है आदमी 
कैसे बदलेगी सूरत कैसे बसेगी समता
कैसे बरसेगी सद्भावना
जब आदमी का हक़ लूट रहा है आदमी
दिल में अरमान आँखों में आंसू  लिए
श्रम बीज बो रहा है शोषित आदमी
छल या  कुछ और
विज्ञानं के युग,में भी
आदमी को नीच कह रहा है आदमी
आधुनिक होने का स्वांग रच रहा है आदमी ........नन्द लाल भारती...१६.०९.२०१२

No comments:

Post a Comment