Wednesday, February 15, 2012

दुर्भाग्य का दाग.....

वाह क्या बात होती
पीड़ित को न्याय
तालीम और श्रम को
हक़ का अमृत मिल जाता
सच हकसा-पिआसा
अदना भी
बरगद की छांव
बन जाता
और दूसरो के लिए.....
अदना बड़े-बड़े
मुश्किलों के पहाड़
ढ़केल कर
पीठ से चिपके पेट से
जुडी कमर सीधी कर पाता..........
एहसास होता है अदने को
पराई दर्द का
इसी एहसास की नीव पर
दम भरता है
बरगद की छांव बनने का............
मुश्किलों के बीच
श्रम की बैसाखी के सहारे
हताश अदना पैर जमाये
खड़ा होना सीख लिया है..........
जुआड़बाज
नहीं मान रहे छिनने से
अधिकार
बेख़ौफ़ नाप रहे
अदने के हिस्से का
आसमान............
अफ़सोस,अदने का भाग्य
लूटा जा रहा है
दुर्भाग्य का दाग
माथे मढ़ा जा रहा है
यही है अदना,छोटा होने का
रिसते जख्म का दंड
चाहे छोटा क्यों ना
करता रहे
बड़े-बड़े नेक काम.............नन्दलाल भारती/16.02.2012

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