Tuesday, February 7, 2012

गाँव की मांटी का सोंधापन बहुत याद आता.............

उम्र का अर्धशतक करीब
शहर के जीवन का रजत वर्ष हुआ पूरा
वो अपना गाँव,नीम,पीपल,बरगद की छांव
रिश्तेदारी-नातेदारी, पंछियों का कलरव
और पहली बारिश में
खेत से उठा चन्दन सा
नथुनों में बसा सोंधापन नहीं भूला................
आधुनिक महलों से पटे शहर में
ना तो सच्ची इन्सानियत झलकती
ना सच्ची सदभावना
गाँव की अमराईयाँ और
अंगड़ाइयों का सुख तो दूर तक नज़र नहीं आता..........
हिचकियाँ आज भी आती हैं
अर्थ हिचकियों का शहर में नहीं रहा
गाँव की याद भी सताती है
कौआ मुडेर पर नहीं बैठता,शहर में
नहीं अतिथि देवो भवः की दस्तक................
गाँव जाने पर आज बड़े-बूढ़े
हकसे-पिआसे आते हैं
कुशलता पूछने
शहर में मुसीबतों के पल लोग, नज़र फेर लेते हैं
शहर की चकाचौंध,
बड़े बड़े हेलोजनो की दूधिया रोशनी
अंधेरी रात में दिन का एहसास पर सूनी गलियाँ
इसके बाद भी वो गाँव की डेबरी कहाँ आज तक..............
शहर की तरक्की भले चूम रही हो गगन
गाँव की आहो-हवा करती दिल मगन
गाँव में सामाजिक बुराईयों का पसरा है डेरा
अछूत-वंचितों अपवित्र कुएं का पानी
रिसते जख्म का डंसता फेरा................
काश मिट जाता
सामाजिक बुराईयों का दहकता दाग
गाँव अपना धरती का स्वर्ग हो जाता
शहर तो माया का दरिया पल में
रूप बदल जाता
शहर की भीड़ में आदमी तनहा रह जाता
आज शहर में भी
गाँव की मांटी का सोंधापन बहुत याद आता............नन्दलाल भारती/ 07.02.2012

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