Tuesday, January 24, 2012

हो नहीं सकता.....

नर का रूप ,
नारायण का प्रतिनिधि
वही आदमी
क्या से क्या हो गया,
होंठ पर नकली शहद
मन से जहरबो रहा
वो आदमी अपनापन
बो नहीं सकता .............
सिर काटे बाल की रक्षा
घात पर घात हैवान ऐसा
सच्चा आदमी हो सकता............
स्वहित में जीना-मरना-मारना
गैर का अहित और
खुद के मान का अभिमान
गैर के मान का
खून करने वाला
शरीफ तो हो नहीं सकता..........
जिस दिल में डाले हो डेरा
भेद, छल, प्रपंच, लोभ
शोषण-दोहन का भाव
ऐसे बंजर दिल में
समभाव पनप नहीं सकता..........
ओहदे का भय दौलत की हुंकार
कमजोर पर पनाग की फुफकार
ऐसा आदमी
बहुजन हिताय का काम
कर नहीं सकता..........
बो रहा हो जो
जाति-धर्म के आतंकी बीज
ऐसा आदमी मानवतावादी
हो नहीं सकता.....................
दिखावटी फूल हाथ में
बगल में रखता हो खंजर
आदमी ऐसा भरोसे का तो
हो नहीं सकता.......................नन्द लाल भारती/ 24.01.2012

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