Thursday, October 20, 2011

आवेश

आवेश ......

ये नसीब के हत्यारों
क्या खता थी
मार दिए सपने
भर-भर-आवेश ।
क्या यह गुनाह है
अपने देखना
सींचते रहना
तालीम-श्रम
और
विश्वास के गंगाजल से ।
खंडित नहीं हुआ
विश्वास ,इसी सहारे
सपनों की शव -यात्रा
ढो रहा कंधो पर ।
तपस्या भंग करने वालो
रहे याद
लजा रहे हो
तुम अब भी
तुम्हारी पीढियां भी
लजाती रहेगी ।
कमजोर की नसीब कैद
रखने का चक्रव्यूह रचा
चरित्र हीनता
आरोप भी लगाए
साल भी रहे
क्योंकि सारी कुंजी
तुम्हारे पास है
कोई भी गुनाह सकते हो
तुम्ही को होगा बताना
तुम्हे गुनाह कबूल है
की नहीं
पीढ़ियों तक सवाल
करता रहेगा जमाना ।
ये नसीब के हत्यारों
खता ना थे कोई मेरी
तालीम-योग्यता- हक़ की छांव
सपने देखना सींचते रहना
वफ़ा-फ़र्ज़ पर अड़े रहना
क्या गुनाह है ।
अत्याचार-अन्याय हुआ
नसीब की हत्या हुई
गुनाह की सजा
मिलती रहेगी
खैर
देने वाला
मैं कौन होता हूँ ।
हर गुनाह की सजा है
यदि इश्वर है तो
देर से मिले भले
कई जन्मो तक
मिलती रहेगी
प्रभू का यही है आदेश
ना सताओ कमजोर को
ना बनो नसीब के
हत्यारे
ना बोओ नफ़रत
जाति-धर्म के आवेश ........नन्द लाल भारती २१.१०.२०११

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