Thursday, June 16, 2011

कविता-1

बदल जो
गरज कर बरसे है
वह गरीब की
पुकार थी
गरीब मज़दूर
ही तो
बोटा है सपने
पसीने में तपकर
जल और धुप
रच देते है
उपज
ऐसा ही है
त्याग
जनहित में
आम मजदूर आदमी का
वही तो है
विकास की
असली नीव ......नन्द लाल भारती १६.०६.२०११

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