Sunday, May 15, 2011

अमर गीत

अमर गीत...
गंगाजल सरीखे आँखों के
पानी का मोल
आदमी रूप खुदा का
मन की गहराई से तोल।
बहते आंसू को पोंछ
कमजोर के काम आया जो
जगाया जज्बात देव तुल्य
सच्चा इंसान है वो ।
मर मिट जायेगे सब
पीछे भी तो यही हुआ ,
किया काम कल्याण का
आदमी वही खुदा हुआ ।
माया के हुश्न
तरबत्तर दीन को सताया
वक्त ने दुत्कारा
ना कभी ज़माने को
याद आया ।
वक्त ने बिन पानी की
मीन सा तड़पाया
तानाशाहों ने भी
कफ़न तक नहीं पाया ।
आदमी खुदा का रूप उजियारा
उठे हर हाथ चिराग
मिटे हर अँधियारा ।
कृष्ण किये उध्दार
राम हुए पुरुषोत्तम
महावीर अहिंसा, बुध्द ने जलाई
समता की ज्योति सर्वोत्तम
कबीर ,रविदास के शब्द
ललकार रहे
गूंज रही मीरा की धुनें
वाहे गुरु अनुराग रहे ।
ध्रितराष्ट्र को जग धिक्कार रहा
ईसा बुध्द के आदर्शो को
जग मान रहा ।
ना तडपे भविष्य
ना आँखे अब रोये
लिख दो अमर गीत भारती
समय के आरपार जगवाले गाएं..........नन्द लाल भारती ..१५.०५.2011

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