Friday, May 6, 2011

बेगाना

बेगाना ...
झोली भर दे
क्यों हुआ बेगाना ,
दहकता पाषाण सा
मन ना मन ।
कर्तव्य दूर कोसो
स्वार्थ सवार हो गया ,
तुमसे उम्मीद औरो से
ना उम्मीद हो गया ।
ऊँची मंजिले ना खजाने की चाह
नेक अरमानो का पूरन
समता की आस ।
योहि दिन बितता
मै पिछड़ता गया ,
यादो की बारात
संग
सिसकता रह गया ।
था क्या दोष
आखिर में रखा गया ,
कर्मवीर शूरवीर,
अधिकार वंचित रह गया ।
उम्मीद तुमसे ना
बिसार पाओगे
बुध्द के वेश में
तुम जरुर आओगे ।
भेद भरी दुनिया में
समता बस जायेगी
ज़माना वैकुण्ठ
सा
फलित हो जाएगा ।
भारती रोये निहार-निहार
भेद भरा जमाना
अब तो झोली
भर दो
क्यों हुआ बेगाना .............नन्द लाल भारती

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