Friday, April 22, 2011

गाँव के निवासियों

गाँव के निवासियों ....
मेरे अपने गाँव के निवासियों
गाँव कि धरती
अर्थात जमीं का स्वर्ग
जहा जन्म लेने का
गौरव मिला हमको ।
जहा सूरज पहले लेकर आता है
रोशनी
चाहे जीतनी गरीबी रही हो
सोंधापन समाया रहा
जमीं में यहाँ।
बुराईया अब गाँव कि राह
पकड़ने लगी है
घर-घर में फूट बढ़ने लगी है ।
काम -धंधा का टोंटा
पड़ने लगा है
प्रजातंत्र के ज़माने में
श्वेत खोटा लगाने लगा है ।
गाँव अब टूट रहा है ,
देश कि आत्मा ठगा-ठगा
लग रहा है
आजमगढ़ क्या
देश विदेश के रोजनामचे पर
छपती रहती है
गाँव कि खबरे ।
वही गाँव जहा से चला
मोटा धन ऊँचा ओहदा
हवा कि राह तक चला।
गाँव कि दुर्दशा ग्रामीणों के पलायन
रोजगार कि कमी
भूमिहीनता बेहद का चलन
ये काफी है
चहरे पर कालिख पोतने के लिए ।
समाज सेवको देश भक्तो से
गुजारिस है मेरी
कुछ तो कीजिये तरक्की से दूर
राह जोह रहे गाँव के लिए ।
क्या गाँव के लिए
प्रभारी नियुक्त नहीं
किया जा सकता
माप सके जो विकास को
कर सके
खिलाफत कुव्यवस्थाओ
जातीपाती कि बुराईयों का ।
गावं के सामाजिक आर्थिक
विकास का ढूंढ सके उपाय
बची रहे
अस्मिता रोजगार का हो सृजन ।
ग्रामीण विकास के लिए
ढूढिये कोइ दागरहित
सुयोग प्रभारी महान
भले ही ना रहा हो
नाता गाँव से
ढूढिये गाँव कि बुराईयों के दमन
और
कल्याण के लिए
मुखबिर कि भांति
गाँव कि सेवा के लिए
आजीवन मै
उपलब्ध रहूँगा श्रीमान ...........नन्दलाल भारती

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