Saturday, February 19, 2011

अब तो उठ जाओ

अब तो उठ जाओ ...
हे जग के पालन कर्ताओ
शोषित,भूमिहीन
खेतिहर मजदूर किसानो
कब तक रिरकोगे ताकोगे
वंचित राह
उठने की चाह बची है
अगर
आँखों में जीवित है
सपने कोई
देर बहुत हो गयी
दुनिया
कहा से कहा पंहुच गयी
तुम वही पड़े
तड़प रहे हो
पिछली शादियों से
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ ........................
तोड़ने है बंदिशों के ताले
छूना है तरक्की के
आसमान
नसीब का रोना
कब तक रोओगे
खुद की मुक्ति का ऐलान करो
नव प्रभात चौखट आया
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ ........................
जग झूमा तुम भी झूमो
नव प्रभात का करो सत्कार
परिवर्तन का युग है
साहस का दम भरो
कर दो हक़ की
ललकार
नगाड़ा नक्कारो का गूँज रहा
कर दो
बुलंद फुफकार
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ ........................
कब तक ढोओगे
मरते सपनों का
बोझ
मुक्ति का युग है
हाथ रखो हथेली प्राण
मन भर उमंग
२१वी शादी का आगाज़
इंजाम तुम्हारे कर कमलो में
बहुत रिरक लिए
दिखा दो
बाजुओ का जोर
थम जाए
नक्कारो का शोर
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ ........................
नव प्रभात विकास कि
पाती लाया है
मानवतावाद का आगाज़ करो
आर्थिक समानता की बात करो
अत्याचार,भ्रष्टाचार पर करने को वार
जग के पालन कर्ताओ
हो जाओ तैयार
समता की क्रांति का करो
ललकार
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
हुआ विहान जाग जाओ
अब तो उठ जाओ ........................
आंसू पीकर
दरिद्रता के जाल फंसे रहे
बलिदान से अब न डरो
हुआ विहान जागो
करो ताकत का संचय
कल हो तुम्हारा
विकास की बहे धारा
शोषित भूमिहीन मज़दूर किसानो
एक दूसरे की ओर
हाथ बढाओ
अब तो उठ जाओ ........................
नन्दलाल भारती ...०१.०१.२०११

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