Tuesday, February 15, 2011

नया सूर्योदय

नया सूर्योदय
करता बसंत की खेती
पावे अंजुलि भर-भर पतझड़
यह कैसा अत्याचार
आगन में बरसे अँधेरा
चौखट पर गरजे सांझ
हुंकारों का मरघट
उत्पात मचाया
शोषण उत्पीडन नसीब
बन रुलाया ।
ये कैसा
प्रलय
जहा उठती
दीन-शोषितों को
कुचलने की आंधी
क्रांति कभी करेगी प्रवेश
कोरे मन में
ना भड़कती अधिकार की
ज्वाला
चीत्कार से नभ
कांप उठता
धरती भी अब थर्राती
नसीब कैद
करने वालो के माथे
सिकन ना आयी ।
दुःख के बदल
वेदना की कराह
उठने की उमंग
नहीं टिकती यहाँ
अभिशाप का वास
जीवन त्रास यहाँ
भूख से कितने
बीमारी से कितने मरे
ना कोइ हिसाब यहाँ
कहते नसीब का
दोष
बसते दीन दुखी जहा
क्रांति का आगाज
हो जाये अगर
मिट जाती सारी बलाये
श्रम से झरे
सम्वृधि ऐसी
पतझड़ कुनबा हो जाये
मधुवन
कुव्यवस्था का षणयंत्र
डंसता हरदम
ना उठती क्रांति
सुलगते उपवन .
जीवन तो ऐसे बितता
जैसे
ना आदमी
बिलकुल पशुवत
क्या शिक्षा क्या स्वास्थ्य
क्या खाना-पानी
आशियाने में छेद इतना
आता-जाता बेरोक-टोक
हवा-पानी
शोषित-वंचित
भारत की दुखद कहानी.
वंचित भारत से अनुरोध हमारा
आओ करे क्रांति का आह्वाहन
सड़ी-गली परिपाटी का कर दे
मर्दन
भस्म कर दे
मन की लकीरे
समता के बीज बो दे
हक़ की आग लगे दे
वंचित मन में
सोने की दमक आ जाए
वंचित भारत में
नया सूर्योदय हो जावे
अँधेरे अम्बर में ...................नन्दलाल भारती

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