Friday, October 8, 2010

इंसाफ कहा प्यारे......

इंसाफ कहा प्यारे.....


इंसाफ की आस में
रोशनी होती
दिन पर दिन मंद ,
योग्यता आज बौनी
श्रेष्ठता के हौशले बुलंद ।
ऐसे में
इन्साफ कहा प्यारे
अरमानो पर
जब पड़ रहे हो ओले
जीवन संघर्ष
संभावनाओ में
योग्य कर्मशील अदना
जब जी रहा ह़ो
पल-पल खाकर हिचकोले ।
इन्साफ की ताक में
उम्र गुजर गयी ,
नसीब का बलात्कार
जीत भी हार हो गयी ।
किससे कैसी .......?
इन्साफ की आस
हाशिये के आदमी को
जब मान लिया
गया हो
अभिशाप ।
शैक्षणिक और व्यावसायिक
महारथ भी बौनी हो गयी ,
श्रेष्टता की तरक्की
दिन दुनी रात चौगुनी हो गयी ।
ऐसी फिजा में कैसे आएगी
तरक्की
आम-आदमी के अंगना
क्या जरुरी नहीं
हो गया अब आम-आदमी को
मौन तोड़ना ।
हक़ की लूट ,नसीब का बलात्कार
हाशिये का आम पढ़ा-लिखा आदमी
नित- सह रहा अत्याचार ।
दीन चौथे दर्जे के आदमी के
विकास के रास्ते बंद हो रहे
ललचाई आँखों से देखने के
हुक्म दिए जा रहे ।
आम-आदमी का भी कोई
अस्तित्व है
नकारा जा रहा
हक़ की मांग पर
पाँव तले जमीन तक
छिनने की साजिश हो रही
कैसे मिलेगा इन्साफ
योग्य आम- चौथे दर्जे के
आदमी को
भेद भरे जहा में
न सुनने वाला अब
कोई है पुकार ,
इस जहा में गूंज रही
श्रेष्ठता, भेद-भाव ,भाई-भतीजावाद की
फुफकार ....
समान तरक्की और समानता का
जीवन चाहिए
शिक्षित बनो संघर्ष करो
तभी होगा उध्दार
इन्साफ की आस में
अब ना और इंतजार .....नन्दलाल भारती .....०९.१०.०१०

1 comment:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है!
    या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता।
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
    नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

    मरद उपजाए धान ! तो औरत बड़ी लच्छनमान !!, राजभाषा हिन्दी पर कहानी ऐसे बनी

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