Tuesday, October 12, 2010

अभिव्यक्ति

अभिव्यक्ति
ज़माने की दर पर
बड़े घाव पाए है ,
हौशले बुलंद पर
खुद को दूर पाए है ।
पग-पग पर साजिशे
हौशले ना मरे
षणयंत्र के तलवार गरजे
पर रह गए धरे ।
क्या बयान करू
नसीब पर खूब चले आरे ,
लूट गयी तालीम
अभिव्यक्ति संबल हमारे ।
छल की चौखट पर
कर्म बदनाम हुआ ,
दहक उठे ख्वाब
फ़र्ज़ बदनाम ना हुआ ।
चाँदी का जूता नहीं
सिर पर नहीं ताज
फ़कीर का जीवन
अभिव्यक्ति का नाज़ ।
षणयंत्र भरपूर,
रास्ते बंद ,
ना चाहू खैरात ,
हक़ की ख्वाहिश ,
क्यों चढ़ी माथे
बैर की बारात ।
मिट जायेगा कल
आज पर कतरे जायेगे ,
छीन जाए रोटी भले
मर कर ना मर पायेगे ।
दीवाना समय का पुत्र
क्या मार पाओगे ,
आज लूट लो नसीब भले
एक दिन आत्मदाह
कर जाओगे ........नन्दलाल भारती॥ ११.१०.२०१०

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