Saturday, October 2, 2010

अपराध

अपराध
भला ये कैसा अपराध
निरापद अपराधी हो गया ,
भूखे श्वान को रोटी देना
जिल्लत बन गया
आदमी बदनाम हो गया ।
आदमी ब्रह्माण्ड का
सबसे होशियार प्राणी है
दूसरे ग्रह पर बसने की
कर रहा तैयारी है
विज्ञानं के युग में
छुआछूत भारी है
दलित की रोटी खाकर
उंच बिरादरी का श्वान
अपवित्र हो जाता है ।
रोटी देने वाले कर्मवीर को
दंड दिया जाता है
लहू को पसीना कर
फसल तैयार करने , निर्माण करने वाले को
अछूत कहा जाता है
सारा जहा शोषित, वंचित
दलित के श्रम से उपजी
रोटी खाता है
एहसान के बदले
कर्मवीर
दुत्कार पाता है ।
दुनिया बदली पर ना बदले
रुढ़िवादी रीतिरिवाज
जीवन की रीढ़
शोषित,वंचित, दलित ,
हाशिये का आदमी श्रमवीर
अछूत है आज भी
आज़ादी के बाद भी ।
रोटी किसका पसीना पीकर
खिलती है
सारा जहा जानता है ,
दुर्भाग्य नहीं तो और
शोषित,वंचित, दलित ,
हाशिये का आदमी श्रमवीर को
अछूत कहा जाता है ।
इसी श्रमवीर के पसीने से
तपकर रोटी मिल रही है
जिसके पसीने से
उपजी रोटी खाकर
दुनिया पल रही है .
उसी के हाथ से रोटी खाकर
उंच बिरादरी के श्वान का अभिमान ध्वस्त हो जाता है
रोटी देने वाले का स्वाभिमान कुचला जाता है ।
ये कैसा अन्याय
श्रमवीर अपराधी हो गया
जुल्म उपभोग करने वाला निरापद
कहते है अन्न उपजाने वाला भगवान् होता है
शोषित,वंचित, दलित ,
हाशिये का आदमी श्रमवीर
यही तो कर रहे है
सम्मान के बदले पग-पग
अपमान पा रहे है
पुराना जाति परम्परा के नाम
बदसलूकी अपराध है यारो
नफ़रत की फसल को
समानता के गंगाजल से
सींचने का वक्त है
खा लो कसम फिर ना होगा
जाति-भेद के नाम
आदमियत का अपमान
शोषित,वंचित, दलित ,
हाशिये का आदमी श्रमवीर
दुनिया को यौवन देने वाला
धरती की छाती चीरकर
रोटी उपजाने वाला
सचमुच है भगवान...............नन्दलाल भारती ॥ ०१.१०.२०१०

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