Wednesday, September 15, 2010

उपकार

उपकार ..
नफ़रत किया जो
तुमने क्या पा जाओगे ?
मेरे हालत एक दिन
जरुर बह जाओगे ।
गए अभिमानी
कितने
आयेगे
और
गरीब कमजोर को
सतायेगे ।
मै नहीं चाहूगा
कि वे बर्बाद हो
पर
वे हो जायेगे ।
जग जान गया है
गरीब कि
आह
बेकार नहीं जाती
एक दिन ख़ुद
जान जाओगे ।
मै कभी ना था
बेवफा
दम्भियो ने
दोयम दर्जे का
मान लिया
शोषित के दमन कि
जिद कर लिया ।
समता का पुजारी
अजनबी हो गया
कर्मपथ पर
अकेला चलता गया ।
वे छोड़ते रहे
विषबान,
घाव रिसता रहा
आंसुओ को स्याही मान
कोरे पन्ने सजाता रहा ।
शोषित कि
काबिलियत का
अंदाजा ना लगा
भेद का जाम ,
महफ़िलो में
शोषित अभागा लगा ।
वक्त का इन्तजार है
कब करवट बदलेगा
दुर्भाग्य पर कब
हाथ फेरेगा ।
मेरी आराधना कबूल करो
प्रभु
नफ़रत करने वालो के
दिलो में
आदमियत का भाव
भर दो
एहसानमंद रहूगा
तुम्हारा
उपकार कर दो ....नन्दलाल भारती ... १५.०९.२०१०




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