Tuesday, September 14, 2010

आते हुये लम्हों

आते हुये लम्हों
हे आते हुये लम्हों
बहार की ऐसी बाया लाना ,
नवचेतना, नव परिवर्तन
नव उर्जावान बना जाना ।
अशांति विषमता,
महंगाई की प्रेत छाया
ना मदराये
ना उत्पात ना भेदभाव
ना रक्तपात
ना ममता बिलखाये।
मेहनतकश धरती का सूरज चाँद
नारी का बढे सम्मान ,
न तरसे आँखे
मेहनत पाए
भेद रहित सम्मान ।
जल उठे मन का दिया ,
तरक्की के आसार
बढ़ जाए
माँ बाप की ना टूटे
लाठी
कण-कण में ममता
समता बस जाए ।
भेद का दरिया सूखे
दरिंदो का ना गूंजे हाहाकार ।
इन्सोनो की बसत में बस
गूंजे
इंसानियत की जयजयकार।
देश और मानव
रक्षा के लिए
हर हाथ थामे तलवार
तोड़ दीवारे भेद की सारी
देश-धर्म के लिए रहे तैयार ।
जाती धर्म के ना पड़े ओले
अब तो मौसम बसंती हो जाए
शोषित मेहनतकश की चौखट तक
तरक्की पहुँच जाए ।
एहसास रिसते जख्म का दर्द
दिल में फफोले खड़े है ,
मकसद निज़दिकी उनसे
जो तरक्की समता से
दूर पड़े है ...
बीते लम्हों से नहीं
शिकायत
पूरी हो जाए अब
कामना ,
हे आते हुये लम्हों
आस साथ तुम्हारे
सुखद हो
नवप्रभात
सच हो जाए
खुली आँखों का सपना ...नन्द लाल भारती॥ १४.०९.२०१०
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हिंदी माता है, माता का अपमान सम्मान तो नहीं
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1 comment:

  1. बहुत सुन्दर कामना ...इसका कुछ अंश ही हो जाए ..

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