Friday, August 27, 2010

पतिता

पतिता
गुलामी, माँ के पैरो की देख जंजीरे,
पतिताओ के घुघुरू उगले थे अंगारे।
आज़ादी को महासमर,
राजा रंक सब थे जुटे
देश भक्त पतिताए
कैसे रहती पीछे
वे भी कूद पड़ी ।
अज़ीज़न नर्तकी देशभक्त
कानपुर वाली
देश पर मर मिटने का
जज्बा रखने वाली ।
कानपुर में गोरो ने किया
आक्रमण जब
कूद पड़ी रणभूमि में
वीरांगना तब ।
दुर्भाग्यवस
गोरो के हाथ आ गयी
गोरो की शर्त माफ़ी मांगे,
हो गयी शहीद
रिहाई की शर्त को
ठोकर
मार गयी ।
पूना की चंदाबाई देशभक्त थी
गीतों से देशप्रेम की मशाल
जलाया करती थी ।
चंदाबाई का गीत प्रसिध्द एक
परिंदों हो जाओ आजाद
काहे तुम पिज़रे में पड़े
राजाजी जुल्म करे।
कशी की ललिताबाई
चंदा मांगती थी
खद्दरधारी चरखा
चलाया करती थी ।
अंग्रेज कोतवाल की तरफ
पीठ कर थी गाई
ऐसो की क्यों देखे सूरत
जिन्हें वतन से अपने नफ़रत।
आरा की गुलाबबाई
भी
शोला थी
आज़ादी खातिर
तलवार उठा ली थी ।
पतिताए भी धन्य ,
आज़ादी के समर तप
पवन हुई
भारत माता की बेड़िया
काटने में
सफल हुई।
भले भूल गया हो
इतिहास
पतिताए भी
आयी
देश के काम
ऐसी जानी-अनजानी
शहीद
पतिताओ को प्रणाम ......नन्द लाल भारती॥ २८.०८.२०१०

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