Wednesday, August 4, 2010

पैगाम

जिन्दा हूँ
तो
चिराग है ,
गमे दिल ,
पल
-पल सुलगती आग है ।
ज़िन्दगी देने वाले
तेरी करामत का क्या राज है
कगी मेला कही झमेला
कही उदास आज है ।
कही रोना कही गाना
कही अँधेरा ही अँधेरा ,
कही बदनसीब के भाग्य का
नहीं हो रहा सबेरा ।
सिसक रहा बिच बाज़ार
न बन रहा सहारा कोई मेरा ।
हे ज़िनाही देने वाले
क्या दोष होगया मेरा
ज़िन्दगी एक ख्वाब है
विश्वास है मेरा ।
तड़पना ,ठोकरे खाना
क्या यही नसीब है मेरा ।
बस जी रहा हूँ
अरे सुने लो मेरी पुकार
तेरे बिछाए जाल में
नहीं गूंज रही गुहार ।
क्या इसीलिए बख्शा
जिनगी बेहाल रहू
तेरे बन्दों के बीच
तड़पता हर हाल रहू ।
सुन लो तुम
यहाँ नहीं कोई
सुनने वाला है मेरा
ज़िन्दगी है तेरी बख्शीश
तुमको पैगाम है मेरा । नन्द लाल भारती ०४.०८.२०१०

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