Monday, July 19, 2010

कुछ रचनाये

मुश्किलों के दिनों में
किसी दोस्त ने
मदद किया है ।
यह मदद ,
क़र्ज़ मान लीजिये ।
दान नहीं
यह क़र्ज़ है
क़र्ज़ समझिये ।
वापस करना
धर्म मान लीजिये
दोस्ती है
कायम रखना
अगर
दोस्ती के ,
फ़र्ज़ पर
खरा उतरिये ... नन्द लाल भारती १९.0७.२०१०
०००००
मुबारक हो
यूं फूल सा
खिलखिला जाना ।
ठहरी रहे ये ,
जुड़ता रहे
नित नया तराना।
प्रसून सा
जीवन
नाचता रहे
भौरा।
आहट से
खिलखिला उठे
घरौंदा ।
मुबारक हो ,
हर रात
सुहानी बन जाए
जीवन की सुगंध से
वक्त गमकता
रह जाए .... नन्द लाल भारती १९.०७.२०१०
०००००
पीर की महफ़िल में
जख्म खुद का
खुद सहला लेता हूँ ,
पल-पल रंग
बदलती रगों को
कागज पर
उतार लेता हूँ..... नन्द लाल भारती १९.०७.२०१०

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