Friday, July 2, 2010

भरे जहा में ..

भरे जहा में ..
भरे जहा में
परायेपन की बेवफाई
मतलब का विष ,
डंसती भेद की परछाई ।
सामाजिक द्वेष की
आज के जग में ,
हौशला अफजाई
आहात मन उत्पीडन की ,
ना सुनवाई ।
समता की दीवाना
समझौतावादी झुक
जाता बार-बार
उसूलो का पक्का
ईमान ना झुका एक बार ।
बेबस भेद भरे जहा में
आशा ही जीवन का आधार
बड़े दर्द ढोए है,
विषमता ने छोपा है खार।
जीवन बना पतझड़
ना खिला तकदीर का तारा
गम की राहे लक्स आंसू
बैरी हुआ जग सारा ।
बाँट गयी कायनात
भारती तडपे बेसहारा
ना घेरे भेद अब
मानव उत्थान रहे ध्येय हमारा.......... नन्दलाल भारती॥ ०२-०७-२०१०

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